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कैसे हैं ये नीले लोग / कुमार नयन
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कैसे हैं ये नीले लोग
अमृत से ज़हरीले लोग।
तन के मैले हैं लेकिन
मन के हैं चमकीले लोग।
अंदर फूल सरीखे हैं
बाहर से पथरीले लोग।
लथपथ खून-पसीने से
रहते हरदम गीले लोग।
भूखे-प्यासे ही अक्सर
सोते सूखे पीले लोग।
अपनी धुन के पक्के हैं
बेहद सरल लचीले लोग।
दुख अपना झुठलाते हैं
हंस-हंसकर मस्तीले लोग।
हक़ अपना कब पाएंगे
भोले मन के ढीले लोग।
दिल में शोले रक्खेंगे
इक दिन ये बर्फीले लोग।

