भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शाम बेरंग अनमनी क्यों है / कुमार नयन

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:29, 3 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार नयन |अनुवादक= |संग्रह=दयारे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शाम बेरंग अनमनी क्यों है
बेख़ुदी में भी बेकली क्यों है।

रौशनी भी है और अंधेरा भी
शमअ ये आज अधजली क्यों है।

गुफ्तगू ख़त्म हो गयी सारी
दास्तां फिर भी अनकही क्यों है।

वक़्त-बेवक़्त ये रुलाती है
इस क़दर याद मनचली क्यों है।

अब तलक मैं समझ नहीं पाया
दिल मिरा मुझसे अजनबी क्यों है।

तुमसे होकर जुदा मैं हैरां हूँ
ज़िन्दगी अब तलक बची क्यों है।

हम नहीं जानते बता दीजै
दुश्मनों से भी दोस्ती क्यों है।