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बोल देती है बेज़ुबानी भी / अनीता मौर्या
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बोल देती है बेज़ुबानी भी,
ख़ामोशी के कई म'आनी भी,
वक़्त - बेवक़्त ही निकल आये,
है अजब आँख का ये पानी भी,
वो सबब है मेरी उदासी का,
उससे है दोस्ती पुरानी भी,
वो मरासिम बढ़ा के छोड़ गया,
दर्द होता है जाविदानी भी,
जन्म देकर कज़ा तलक लाई,
ज़िन्दगी तेरी मेज़बानी भी,
आज फिर क़ैस को ही मरना पड़ा,
हो गयी ख़त्म ये कहानी भी...

