भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गजल रो रही / हरेराम बाजपेयी 'आश'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:45, 13 फ़रवरी 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अल्लाह को प्यारा मोहम्मद हो गया हैं,
स्वरों का सहारा, रफी खो गया है।

लाखों दिलों को धड़कने जिसने दी थी।
उसकी धड़कने रुकीं क्या गज़ब हो गया हैं।

दुआओं के दीपक तूफानों में बुझ गए,
रोशनी थी जहाँ, अब धुआँ हो गया है।

गजल रो रही, गीत गुमसुम हैं बैठे,
रफी अब नहीं है, पर अमर हो गया है॥