भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेघ उतरे हैं धरा पर / रेनू द्विवेदी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:48, 16 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेनू द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बूँद की बारात लेकर,
बिजलियों का बैंड बाजा!
मेघ उतरे हैं धरा पर,
सृष्टि गाती गीत मंगल!

मनचली पागल घटाए,
गुदगुदाकर मन रिझातीं!
अनगिनत यह स्वप्न पलकों,
पर नए पल-पल सजातीं!

वाटिका की हर कली को,
छेड़ती है वायु चंचल!
मेघ उतरे---

प्रीत की चुनरी पहनकर,
प्रेम में ये ढल रही है!
भूमि प्रिय को पास पाकर,
बर्फ जैसी गल रही है!

सावनी बरसात से तो,
भीगता प्रतिपल हृदय तल
मेघ उतरे---

झील सागर और नदियों,
में पुनः आयी रवानी!
बारिशों का बूँद पीकर,
हो गयी वसुधा सयानी!

खेत जल से हैं लबालब,
खिल गए नद बीच शतदल!
मेघ उतरे---