भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अगर तुम साथ हो / कैलाश झा 'किंकर'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:09, 16 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश झा 'किंकर' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अगर तुम साथ हो
कहीं पर रात हो।

सफर आसां बने
तो मंज़िल पास हो।

तुम्हीं कविता-ग़ज़ल
तुम्हीं संसार हो।

मचलते ख़्वाब के
तुम्हीं आधार हो।

सदा हँसते रहें
तो दुनिया ख़ास हो।

मुहब्बत के लिए
दिलों में प्यार हो।