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मनुज को मनुजता का अभिमान देना / रचना उनियाल
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मनुज को मनुजता का अभिमान देना
धवलता रहे हिय यही भान देना।
विनाशित तमस हो प्रताड़ित धरा से,
प्रकाशित मनस हो, मनस गान देना।
कृपण भावनाओं घटाओं सुलाकर,
मुदित देह काया सदा ज्ञान देना।
सजाये मदन भी कुसुम आगमन को,
बजे तार वीणा यही दान देना।
प्रकृति प्रेम मुखरित कहे मीनआया,
हृदय वेणु खोलें सदा मान देना।
तुम्हीं शारदा हो, हमारी रमा हो,
रहो प्राणियों में प्रतिष्ठान देना।
मिटा वेदना पीर को माँ जगत से,
बँधे बंधु बांधव का जयगान देना।
मकर झूमता गा रहा भारती को,
परागित सुवासित आयुष्मान देना।
मनुष लोभ त्यागे रहे कल्पनायें,
अज्ञानी समझ ले परा प्रान देना।
रमे योग में मनु तभी पार पाये,
जपे माँ तुझी को हमें ध्यान देना।

