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नफरतों के बीच प्यार / हरिवंश प्रभात

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नफरतों के बीच प्यार का दीया
मुल्क में जलते रहना चाहिए।
रास्ते में कांटें बेशुमार हैं
फिर भी तुमको चलते रहना चाहिए।

बादलों से इल्तजा है ना कहीं अकाल हो,
ना तो धरती बंजर ना ज़िंदगी हलाल हो,
मौसमी हवायें इसका ध्यान हो
अपना रुख बदलते रहना चाहिए।

गर ज़हर फिजाओं में खौफजदा मंज़र हो,
शंका में उठ रहे जो धारदार खंजर हो,
विश्वास की फसल उगे वहाँ
भाईचारा खिलते रहना चाहिए।

चकनाचूर हो गये हैं सपने जहाँ टूटकर,
पस्त हुए हौसले बिखर गये हैं लूटकर,
अब वहीं से एक सबेरा आयेगा
सूर्य को निकलते रहना चाहिए।