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धुंध टलता नहीं है / प्रेमलता त्रिपाठी
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उषा छा रही धुंध टलता नहीं है ।
नयन में जहाँ स्वप्न पलता नहीं है ।
अलस में सभी कर्म भूलें सभी जब,
जगे भाव मन हाथ मलता नहीं है ।
भँवर से निकल बढ़ चले हम किनारे,
मिथक राग वैराग छलता नहीं है ।
महत कर्म अपना मनुजता निभाना,
लगन सादगी से विफलता नहीं है ।
विभा ज्ञान गौरव सुपथगा बनाती,
सधे मार्ग जीवन अमलता नहीं है।
धरें धैर्य संकट कटे आपदा सब,
हृदय साहसी बिन सफलता नहीं है
सदाचार पावन बनाता मनुज को,
कहीं वह कुपथ पर फिसलता नहीं है।

