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आकाश के आंगन में / किरण मल्होत्रा
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आकाश के आंगन में
खरगोश-सी सफ़ेद
रेशम-सी कोमल
छोटी-छोटी बदलियाँ
कल थी
आज नहीं हैं
जैसे यादें कुछ पुरानी
कल थी
आज नहीं हैं
मन भी शायद
एक आकाश है
कभी पल में
उमड़ती-घुमड़ती
घटाएँ घनघोर
तो कभी
मीलों तक
लंबी खामोशियाँ...

