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क्या सुनाया गीत कोयल! / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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क्या सुनाया गीत, कोयल!
समय के समधीत, कोयल!

मंजरित हैं कुंज, कानन,
जानपद के पुंज-आनन,
वर्ष के कर हर्ष के शर
बिंध गया है शीत, कोयल!

कामना के नयन वंचित,
रुचिर रचनाकरों-संचित,
मधुर मधु का तथ्य, अथवा
पथ्य है नवनीत, कोयल!