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"इसलिए / हरीश बी० शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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देवता की खामोशी ही
करती है
आस्था को गूढ़
मान्यता को पैनी।
देवता की पूजा
उसकी जीभ नहीं होने से है
वह आश्वासन भी नहीं देता
मुस्कराता रहता है
हर समय
लगता है-सब इलाज हैं यहां-
गूंगा होने में।

