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"हौसला उम्मीदों का / भारती पंडित" के अवतरणों में अंतर

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13:49, 15 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण


दिखता न हो जब किनारा कोई,
मिलता न हो जब सहारा कोई
जला ले दीया खुद ही की रोशनी का,
कोई तुझसे बढ़कर सितारा नहीं

तूफां तो आए है आते रहेंगे,
ग़मों के अँधेरे भी छाते रहेंगे,
आगाज़ कर रोशनी का कि तुझको,
अंधेरों की महफ़िल गंवारा नहीं.

माना कि ये इतना आसां नहीं है,
मगर सम्हले गिर के जो इन्सां वहीं है,
तारीके शब में उम्मीदों का परचम ,
कहीं इससे बेहतर नज़ारा नहीं .