"बजरंग बाण / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर
DeepakAgrawal (चर्चा | योगदान) |
|||
| (एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 9 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
| पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
| − | {{KKRachna | + | {{KKRachna |
|रचनाकार=तुलसीदास | |रचनाकार=तुलसीदास | ||
| − | + | }} | |
| − | + | ||
| − | + | ||
<poem> | <poem> | ||
| − | == बजरंग बाण == | + | == बजरंग बाण == |
| + | |||
| + | निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करें सनमान । | ||
| + | तेहिं के कारज सकल शुभ,सि़द्ध करें हनुमान ।। | ||
| + | |||
| + | जय हनुमंत संत हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।। | ||
| + | जन के काज विलंब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै ।। | ||
| + | जैसे कूदि सिंधु महि पारा । सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।। | ||
| + | आगे जाय लंकिनी रोका । मारेहुं लात गई सुरलोका ।। | ||
| + | जाय विभीषण को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम पद लीन्हा ।। | ||
| + | बाग उजारि सिंधु महं बोरा । अति आतुर जमकातर तोरा ।। | ||
| + | अक्षयकुमार को मारि संहारा । लूम लपेटि लंक को जारा ।। | ||
| + | लाह समान लंक जरि गई । जय जय धुनि सुरपुर नभ भई ।। | ||
| + | अब बिलंब केहि कारन स्वामी । कृपा करहु उर अंतरयामी ।। | ||
| + | जय जय लखन प्रान के दाता । आतुर ह्वबै दुख हरहु निपाता ।। | ||
| + | जै हनुमान जयति बलसागर । सुर समूह समरथ भटनागर ।। | ||
| + | ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले । बैरिहि मारू बज्र के कीले ।। | ||
| + | ॐ ह्री ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा । ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा ।। | ||
| + | जय अंजनि कुमार बलवंता । शंकरसुवन बीर हनुमंता ।। | ||
| + | बदन कराल काल कुल घालक । राम सहाय सदा प्रतिपालक ।। | ||
| + | भूत, प्रेत, पिसाच निशाचर । अगिन बेताल काल मारी मर ।। | ||
| + | इन्हें मारू, तोहि सपथ राम की । राखु नाथ मरजाद नाम की ।। | ||
| + | सत्य होहु हरि सपथ पाई कै । राम दूत धरू मारू धाई कै ।। | ||
| + | जय जय जय हनुमंत अगाधा । दुख पावत जन केहि अपराधा ।। | ||
| + | पूजा जप तप नेम अचारा । नहि जानत कुछ दास तुम्हारा ।। | ||
| + | बन उपबन मग गिरि गृह माही । तुम्हरे बल हम डरपत नहीं।। | ||
| + | जनकसुता हरि दास कहावौ । ताकी सपथ बिलंब न लावौ ।। | ||
| + | जै जै जै धुनि होत अकासा । सुमिरत होत दुसह दुख नासा ।। | ||
| + | चरन पकरि कर जोरि मनावौं । यहि अवसर अब केहिं गोहरावौं ।। | ||
| + | उठु, उठु, चलु तोहि राम दुहाई । पाँय परौं, कर जोरि मनाई ।। | ||
| + | ॐ चं चं चं चपल चलंता । ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता ।। | ||
| + | ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल । ॐ सं सं सहमि पराने खलदल ।। | ||
| + | अपने जन को तुरत उबारौ । सुमिरत होय आनंद हमारौ ।। | ||
| + | यह बजरंग बाण जेहि मारै । ताहि कहौ फिरि कौन उबारै ।। | ||
| + | पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षा करै प्रान की ।। | ||
| + | यह बजरंग बाण जो जापै । तासौं भूत प्रेत सब काँपै ।। | ||
| + | धूप देय जो जपै हमेशा । ताके तन नहि रहे कलेशा ।। | ||
| + | |||
| + | उर प्रतीति दृढ़ सरन हवै , पाठ करै धरि ध्यान । | ||
| + | बाधा सब हर, करै सब काम सफल हनुमान ।। | ||
| + | |||
| + | लखन सिया राम चन्द्र की जय | ||
| + | उमा पति महादेव की जय | ||
| + | पवन सुत हनुमान की जय | ||
| − | |||
| − | |||
| − | |||
| − | |||
| − | |||
| − | |||
| − | |||
</poem> | </poem> | ||
18:23, 23 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
== बजरंग बाण ==
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करें सनमान ।
तेहिं के कारज सकल शुभ,सि़द्ध करें हनुमान ।।
जय हनुमंत संत हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
जन के काज विलंब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै ।।
जैसे कूदि सिंधु महि पारा । सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।।
आगे जाय लंकिनी रोका । मारेहुं लात गई सुरलोका ।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम पद लीन्हा ।।
बाग उजारि सिंधु महं बोरा । अति आतुर जमकातर तोरा ।।
अक्षयकुमार को मारि संहारा । लूम लपेटि लंक को जारा ।।
लाह समान लंक जरि गई । जय जय धुनि सुरपुर नभ भई ।।
अब बिलंब केहि कारन स्वामी । कृपा करहु उर अंतरयामी ।।
जय जय लखन प्रान के दाता । आतुर ह्वबै दुख हरहु निपाता ।।
जै हनुमान जयति बलसागर । सुर समूह समरथ भटनागर ।।
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले । बैरिहि मारू बज्र के कीले ।।
ॐ ह्री ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा । ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा ।।
जय अंजनि कुमार बलवंता । शंकरसुवन बीर हनुमंता ।।
बदन कराल काल कुल घालक । राम सहाय सदा प्रतिपालक ।।
भूत, प्रेत, पिसाच निशाचर । अगिन बेताल काल मारी मर ।।
इन्हें मारू, तोहि सपथ राम की । राखु नाथ मरजाद नाम की ।।
सत्य होहु हरि सपथ पाई कै । राम दूत धरू मारू धाई कै ।।
जय जय जय हनुमंत अगाधा । दुख पावत जन केहि अपराधा ।।
पूजा जप तप नेम अचारा । नहि जानत कुछ दास तुम्हारा ।।
बन उपबन मग गिरि गृह माही । तुम्हरे बल हम डरपत नहीं।।
जनकसुता हरि दास कहावौ । ताकी सपथ बिलंब न लावौ ।।
जै जै जै धुनि होत अकासा । सुमिरत होत दुसह दुख नासा ।।
चरन पकरि कर जोरि मनावौं । यहि अवसर अब केहिं गोहरावौं ।।
उठु, उठु, चलु तोहि राम दुहाई । पाँय परौं, कर जोरि मनाई ।।
ॐ चं चं चं चपल चलंता । ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता ।।
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल । ॐ सं सं सहमि पराने खलदल ।।
अपने जन को तुरत उबारौ । सुमिरत होय आनंद हमारौ ।।
यह बजरंग बाण जेहि मारै । ताहि कहौ फिरि कौन उबारै ।।
पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षा करै प्रान की ।।
यह बजरंग बाण जो जापै । तासौं भूत प्रेत सब काँपै ।।
धूप देय जो जपै हमेशा । ताके तन नहि रहे कलेशा ।।
उर प्रतीति दृढ़ सरन हवै , पाठ करै धरि ध्यान ।
बाधा सब हर, करै सब काम सफल हनुमान ।।
लखन सिया राम चन्द्र की जय
उमा पति महादेव की जय
पवन सुत हनुमान की जय

