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"वसन्त-परी / सुधा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
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| + | वसन्त-परी | ||
| + | हुई लहू-लुहान | ||
| + | शख़्मी, बेदम | ||
| + | कंक्रीट के जंगल | ||
| + | आ के जो गिरी | ||
| + | हँसता है मानव | ||
| + | पंख नोच के | ||
| + | वहशी बन चुका | ||
| + | करे प्रहार | ||
| + | प्रदूषण-दानव | ||
| + | साँस ही रुकी | ||
| + | आई थी वो खेलने | ||
| + | डूब ही गई | ||
| + | खौलते सागर में | ||
| + | जीवन-तरी | ||
| + | नृशंस, हत्यारा है | ||
| + | महा-नगर | ||
| + | भटकती ही फिरी | ||
| + | लोहा, सीमेण्ट | ||
| + | पत्थरों ने दुत्कारा | ||
| + | होश खो, गिरी | ||
| + | दो बूँद पानी नहीं | ||
| + | ममता नहीं | ||
| + | हरा-सा साया नहीं | ||
| + | |||
| + | धूप से जली | ||
| + | भूखी-प्यासी टकरा | ||
| + | रेत के टीलों | ||
| + | दम तोड़ गई री! | ||
| + | धरा बिलख रही | ||
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15:48, 21 मई 2012 का अवतरण
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सज-धज के
आकाश से उतरी
वसन्त-परी
हुई लहू-लुहान
शख़्मी, बेदम
कंक्रीट के जंगल
आ के जो गिरी
हँसता है मानव
पंख नोच के
वहशी बन चुका
करे प्रहार
प्रदूषण-दानव
साँस ही रुकी
आई थी वो खेलने
डूब ही गई
खौलते सागर में
जीवन-तरी
नृशंस, हत्यारा है
महा-नगर
भटकती ही फिरी
लोहा, सीमेण्ट
पत्थरों ने दुत्कारा
होश खो, गिरी
दो बूँद पानी नहीं
ममता नहीं
हरा-सा साया नहीं
धूप से जली
भूखी-प्यासी टकरा
रेत के टीलों
दम तोड़ गई री!
धरा बिलख रही
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