|
|
| (इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 6 अवतरण नहीं दर्शाए गए) |
| पंक्ति 2: |
पंक्ति 2: |
| | {{KKRachna | | {{KKRachna |
| | |रचनाकार=तुलसीदास | | |रचनाकार=तुलसीदास |
| − | }}
| + | |संग्रह=विनयावली / तुलसीदास |
| − | {{KKCatKavita}}
| + | }} |
| − | [[Category:लम्बी रचना]] | + | * [[विनयावली / तुलसीदास / पद 31 से 40 तक / पृष्ठ 1]] |
| − | {{KKPageNavigation
| + | * [[विनयावली / तुलसीदास / पद 31 से 40 तक / पृष्ठ 2]] |
| − | |पीछे=विनयावली() / तुलसीदास / पृष्ठ 3
| + | * [[विनयावली / तुलसीदास / पद 31 से 40 तक / पृष्ठ 3]] |
| − | |आगे=विनयावली() / तुलसीदास / पृष्ठ 5
| + | * [[विनयावली / तुलसीदास / पद 31 से 40 तक / पृष्ठ 4]] |
| − | |सारणी=विनयावली() / तुलसीदास
| + | * [[विनयावली / तुलसीदास / पद 31 से 40 तक / पृष्ठ 5]] |
| − | }}
| + | |
| − | <poem>
| + | |
| − | | + | |
| − | '''पद 31 से 40 तक'''
| + | |
| − | | + | |
| − | (31)
| + | |
| − | | + | |
| − | | + | |
| − | जय ताकिहै तमकि ताकी ओर को।
| + | |
| − | जाको है सब भांति भरोसो कपि केसरी-किसोरको।।
| + | |
| − | जन-रंजन अरिगन-गंजन मुख-भंजन खल बरजोरको।
| + | |
| − | बेद- पुरान-प्रगट पुरूषाराि सकल-सुभट -सिरमोर केा।।
| + | |
| − | उथपे-थपन, थपे उथपन पन, बिबुधबृंद बँदिछोर को।
| + | |
| − | जलधि लाँधि दहि लंे प्रबल बल दलन निसाचर घोर को।।
| + | |
| − | जाको बालबिनोद समुझि जिय डरत दिाकर भोरको।
| + | |
| − | जाकी चिबुक-चोट चूरन किय रद-मद कुलिस कठोरको।।
| + | |
| − | लोकपाल अनुकूल बिलोकिवो चहत बिलोचन-कोरको।
| + | |
| − | सदा अभय, जय, मुद-मंगलमय जो सेवक रनरोर को।।
| + | |
| − | भगत-कामतरू नाम राम परिपूरन चंद चकोरको।
| + | |
| − | तुलसी फल चारों करतल जस गावत गईबहोरको।।
| + | |
| − | | + | |
| − | (32)
| + | |
| − | | + | |
| − | ऐसी तोहि न बूझिये हनुमान हठीले।
| + | |
| − | साहेब कहूँ न रामसे, तोसे न उसीले।।
| + | |
| − | तेरे देखत सिंहके सिसु मेंढक लीले।
| + | |
| − | जानक हौं कलि तेरेऊ मन गुनगन कीले।।
| + | |
| − | हाँक सुनत दसकंधके भये बंधन ढीले।
| + | |
| − | सो बल गयो किधौं भये अब गरबगहीले।।
| + | |
| − | सेवकको परदा फटे तू समरथ सीले।
| + | |
| − | अधिक आपुते आपुनो सुनि मान सही ले।।
| + | |
| − | साँसति तुलसिदासकी सुनि सुजस तुही ले।
| + | |
| − | तिहूँकाल तिनको भलौ जे राम-रँगीले।।
| + | |
| − | | + | |
| − | | + | |
| − | (37)
| + | |
| − | | + | |
| − | लाल लाड़िले लखन, हित हौ जनके।
| + | |
| − | सुमिरे संकटहारी, सकल सुमंगलकारी,
| + | |
| − | पालक कृपालु अपने पनके।1।
| + | |
| − | धरनी-धरनहार भंजन-भुवनभार,
| + | |
| − | अवतार साहसी सहसफनके।।
| + | |
| − | सत्यसंध, सत्यब्रत, परम धरमरत,
| + | |
| − | निरमल करम बचन अरू मनके।2।
| + | |
| − | रूपके निधान, धनु-बान पानि,
| + | |
| − | तून कटि, महाबीर बिदित, जितैया बड़े रनके।।
| + | |
| − | सेवक-सुख-दायक, सबल, सब लायक,
| + | |
| − | गायक जानकीनाथ गुनगनके।3।
| + | |
| − | भावते भरतके, सुमित्रा-सीताके दुलारे,
| + | |
| − | चातक चतुर राम स्याम घनके।।
| + | |
| − | बल्लभ उरमिलाके, सुलभ सनेहबस,
| + | |
| − | धनी धन तुलसीसे निरधनके।4।
| + | |
| − | | + | |
| − | (38)
| + | |
| − | | + | |
| − | जयति
| + | |
| − | लक्ष्मणानंत भगवंत भुधर,
| + | |
| − | भुजग- राज, भुवनेश, भुभारहारी।
| + | |
| − | प्रलय-पावक-महाज्वालमाला-वमन, शमन-संताप लीलावतारी।1। ज
| + | |
| − | यति दाशरथि, समर ,समरथ, सुमि़त्रा-सुवनत्यंजनी-गर्भ-अंभोति
| + | |
| − |
| + | |
| − | (39)
| + | |
| − | | + | |
| − | जयति
| + | |
| − | भूमिजा-रमण-पदकंज-मकरंद-रस-
| + | |
| − | रिसक-मधुकर भरत भूरिभागी।
| + | |
| − | भुवन-भूषण, भानुवंश-भूषण, भूमिपाल-
| + | |
| − | मणि रामचंद्रानुरागागी।1।
| + | |
| − | जयति विबुधेश-धनदादि-दुर्लभ-महा-
| + | |
| − | राज संम्रा-सुख-पद-विरागी।
| + | |
| − | खड्ग-धाराव्रती-प्रथमरेखा प्रकट
| + | |
| − | शुद्धमति- युवति पति-प्रेमपागी।2।
| + | |
| − | जयति निरूपाधि-भक्तिभाव-यंत्रित-हृदय,
| + | |
| − | बंधु-हित चित्रकूटाद्रि-चारी।
| + | |
| − | पादुका-नृप-सचिव, पुहुमि-पालक परम
| + | |
| − | धरम-धुर-धीर, वरवीर भारी।3।
| + | |
| − | जयति संजीवनी-समय-संकट हनूमान
| + | |
| − | धनुबान-महिमा बखानी।
| + | |
| − | बाहुबल बिपुल परमिति पराक्रम अतुल,
| + | |
| − | गूढ़ गति जानकी-जानि जानी।4।
| + | |
| − | जयति रण-अजिर गन्धर्व-गण-गर्वहर,
| + | |
| − | फिर किये रामगुणगाथ-गाता।
| + | |
| − | माण्डवी-चित्त-चातक-नवांबुद-बरन,
| + | |
| − | सरन तुलसीदास अभय दाता।5।
| + | |
| − | </poem>
| + | |