|
|
| पंक्ति 37: |
पंक्ति 37: |
| | जहाँ नहीं होता<br> | | जहाँ नहीं होता<br> |
| | मैं वहीं सब कुछ पाना चाहता हूँ,<br><br> | | मैं वहीं सब कुछ पाना चाहता हूँ,<br><br> |
| − |
| |
| − |
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| − | {{KKGlobal}}
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| − | {{KKRachna
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| − | |रचनाकार=बोधिसत्व
| |
| − | |संग्रह=
| |
| − | }}
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| − |
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| − |
| |
| − | सूर्य उगा वह मानो मेरा भाग्य उगा !<br>
| |
| − | उसे जानते मैं ने पति को<br>
| |
| − | अपने वश में किया,<br>
| |
| − | विजयिनी शक्ति रूप हूँ,<br>
| |
| − | मैं मस्तक की भाँति मुख्य हूँ ध्वजा-रूप हूँ !<br><br>
| |
| − |
| |
| − | मेरा पति मेरी सहमति को<br>
| |
| − | सर्वोपरि महत्व देता है,<br>
| |
| − | मेरे पुत्र शत्रुहंता हैं, पुत्री रानी;<br><br>
| |
| − |
| |
| − | मेरा पति मेरे प्रति उत्तम श्लोक-प्रशंसा करता है;<br>
| |
| − | अत: हमारा दाम्पत्य जीवन सुंदर है,<br>
| |
| − | सूर्योदय के साथ हमारा<br>
| |
| − | भाग्य उदय होता है प्रतिदिन !<br><br>
| |
| − |
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| − | {{KKGlobal}}
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| − | {{KKRachna
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| − | |रचनाकार=बोधिसत्व
| |
| − | |संग्रह=
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| − | }}
| |
| − |
| |
| − |
| |
| − | छोटी-छोटी बातों पर<br>
| |
| − | नाराज हो जाता हूँ ,<br>
| |
| − | भूल नहीं पाता हूँ कोई उधार,<br>
| |
| − | जोड़ता रहता हूँ<br>
| |
| − | पाई-पाई का हिसाब<br><br>
| |
| − |
| |
| − | छोटा आदमी हूँ<br>
| |
| − | बड़ी बातें कैसे करूँ ?<br><br>
| |
| − |
| |
| − | माफी मांगने पर भी<br>
| |
| − | माफ़ नहीं कर पाता हूँ<br>
| |
| − | छोटे-छोटे दुखों से उबर नहीं पाता हूँ ।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | पाव भर दूध बिगड़ने पर<br>
| |
| − | कई दिन फटा रहता है मन,<br>
| |
| − | कमीज पर नन्हीं खरोंच<br>
| |
| − | देह के घाव से ज्यादा<br>
| |
| − | देती है दुख ।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | एक ख़राब मूली<br>
| |
| − | बिगाड़ देती है खाने का स्वाद<br>
| |
| − | एक चिट्ठी का जवाब नहीं<br>
| |
| − | देने को याद रखता हूं उम्र भर<br><br>
| |
| − |
| |
| − | छोटा आदमी और कर ही क्या सकता हूँ<br>
| |
| − | सिवाय छोटी-छोटी बातों को याद रखने के ।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | सौ ग्राम हल्दी,<br>
| |
| − | पचास ग्राम जीरा<br>
| |
| − | छींट जाने से तबाह नहीं होती ज़िंदगी,<br>
| |
| − | पर क्या करूँ<br>
| |
| − | छोटे-छोटे नुकसानों को गाता रहता हूँ<br>
| |
| − | हर अपने बेगाने को सुनाता रहता हूँ<br>
| |
| − | अपने छोटे-छोटे दुख ।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | क्षुद्र आदमी हूँ<br>
| |
| − | इन्कार नहीं करता,<br>
| |
| − | एक छोटा सा ताना,<br>
| |
| − | एक मामूली बात,<br>
| |
| − | एक छोटी सी गाली<br>
| |
| − | एक जरा सी घात<br>
| |
| − | काफी है मुझे मिटाने के लिए,<br><br>
| |
| − |
| |
| − | मैं बहुत कम तेल वाला दीया हूँ<br>
| |
| − | हल्की हवा भी बहुत है<br>
| |
| − | मुझे बुझाने के लिए।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | छोटा हूँ,<br>
| |
| − | पर रहने दो,<br>
| |
| − | छोटी-छोटी बातें कहता हूँ- कहने दो ।<br><br>
| |
| − |
| |
| − |
| |
| − | {{KKGlobal}}
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| − | {{KKRachna
| |
| − | |रचनाकार=बोधिसत्व
| |
| − | |संग्रह=
| |
| − | }}
| |
| − |
| |
| − | अल्लापुर<br>
| |
| − | इलाहाबाद का वह मुहल्ला<br>
| |
| − | जहाँ सायकिल चलाते या<br>
| |
| − | पैदल हम घूमा करते थे।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | वहीं रहती थीं वो लड़कियाँ<br>
| |
| − | जिन्हें देखने के लिए<br>
| |
| − | फेरे लगाते थे हम दिन भर।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | मटियारा रोड पर रहती थीं<br><br>
| |
| − | पूनम, रीता, ममता, वंदना<br>
| |
| − | नेताजी रोड पर<br>
| |
| − | चेतना, कविता, शिवानी।<br>
| |
| − | कस्तूरबा लेन में रहती थीं<br>
| |
| − | ऋचा, सुमेधा, अंजना, संध्या।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | बाघम्बरी रोड पर रहती थी<br>
| |
| − | एक लड़की<br>
| |
| − | जो अक्सर आते-जाते दिखती थी<br>
| |
| − | वह शायद प्राइवेट पढ़ती थी।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | बड़ी आँखे-बड़े बाल<br>
| |
| − | अजब चेहरा मंद चाल।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | दिन भर खड़ी रहती थी छत पर<br>
| |
| − | कपड़े सुखाती अक्सर,<br>
| |
| − | हजार कोशिशों के बाद भी<br>
| |
| − | नहीं पता चला<br>
| |
| − | उसका नाम - पोस्ट ऑफिस में करता था उसका पिता काम<br>
| |
| − | हालाँकि<br>
| |
| − | यह वह वक्त था जब हम<br>
| |
| − | लड़कियों के नोट बुक के सहारे<br>
| |
| − | जान लेते थे उनके सपनों को भी।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | हजार कोशिशों पर<br>
| |
| − | पानी फिरा यहाँ......<br><br>
| |
| − |
| |
| − | बाद में पता चला<br>
| |
| − | वह ब्याही गई एक तहसीलदार से<br>
| |
| − | शिवानी की शादी हुई वकील से<br>
| |
| − | वंदना की दारोगा से, रीता की बैंक क्लर्क से,<br>
| |
| − | चेतना की कस्टम इंस्पेक्टर से,<br>
| |
| − | संध्या विदा हुई रेल टी.टी. के साथ<br>
| |
| − | सुमेधा किसी डॉक्टर के साथ<br>
| |
| − | ऋचा किसी व्यापारी की हुई ब्याहता<br>
| |
| − | अंजना किसी कम्पाउंडर की,<br>
| |
| − | पूनम की शादी हुई किसी दूहाजू कानूनगो से।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | ममता की शादी नहीं हुई<br>
| |
| − | बहुत दिनों.....<br>
| |
| − | देखने-दिखाने के आगे बात नहीं बढ़ी...।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | कई साल बीत गये हैं<br>
| |
| − | टूट गया है इलाहाबाद से नाता<br>
| |
| − | छूट गया है अल्लापुर....<br>
| |
| − | दूर संचार के हजारों इंतजाम हैं पर<br>
| |
| − | नहीं मिलती ममता की कोई खबर,<br>
| |
| − | उसकी शादी हुई या बैठी है घर,<br>
| |
| − | अब तो किसी से पूछते भी लगता है डर।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | कैसा समाज है, कैसा समय है,<br>
| |
| − | जहाँ मुहल्ले की लड़कियों का<br>
| |
| − | हाल-चाल जानना गुनाह है,<br>
| |
| − | व्यभिचार है,<br>
| |
| − | पर क्या ममता के हाल-चाल की<br>
| |
| − | मुझे सचमुच दरकार है ?<br>
| |
| − |
| |
| − |
| |
| − | {{KKGlobal}}
| |
| − | {{KKRachna
| |
| − | |रचनाकार=बोधिसत्व
| |
| − | |संग्रह=
| |
| − | }}
| |
| − |
| |
| − |
| |
| − |
| |
| − | तमाशा हो रहा है<br>
| |
| − | और हम ताली बजा रहे हैं<br><br>
| |
| − |
| |
| − | मदारी<br>
| |
| − | पैसे से पैसा बना रहा है<br>
| |
| − | हम ताली बजा रहे हैं<br><br>
| |
| − |
| |
| − | मदारी साँप को<br>
| |
| − | दूध पिला रहा हैं<br>
| |
| − | हम ताली बजा रहे हैं<br><br>
| |
| − |
| |
| − | मदारी हमारा लिंग बदल रहा है<br>
| |
| − | हम ताली बजा रहे हैं<br><br>
| |
| − |
| |
| − | अपने जमूरे का गला काट कर<br>
| |
| − | मदारी कह रहा है-<br>
| |
| − | 'ताली बजाओ जोर से'<br>
| |
| − | और हम ताली बजा रहे हैं।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | {{KKGlobal}}
| |
| − | {{KKRachna
| |
| − | |रचनाकार=बोधिसत्व
| |
| − | |संग्रह=
| |
| − | }}
| |
| − |
| |
| − | आज पंद्रह अगस्त<br>
| |
| − | ईसवी सन दो हजार सात है<br>
| |
| − | मैं घर से अंधेरी के लिए निकला हूँ<br>
| |
| − | कुछ काम है<br>
| |
| − | अभी मिठ चौकी पर पहुँचा हूँ भीड़ है<br>
| |
| − | ट्रैफिक जाम है<br>
| |
| − | घिरे हैं गहरे काले बादल आसमान में<br>
| |
| − | कुछ देर पहले बरसा है पानी<br>
| |
| − | सड़क अभी तक गीली है।<br><br>
| |
| − |
| |
| − |
| |
| − | बहुत सारे बच्चों<br>
| |
| − | छोटे-छोटे बच्चों के साथ<br>
| |
| − | एक बुढ़िया भी बेच रही है तिरंगे।<br>
| |
| − | एक दस साल का लड़का<br>
| |
| − | एक सात साल की लड़की<br>
| |
| − | एक तीस पैंतीस का नौ जवान बेच रहा है झंडा<br>
| |
| − | इन सब के साथ ही<br>
| |
| − | यह बुढ़िया भी बेच रही है यह नया आइटम।<br><br>
| |
| − |
| |
| − |
| |
| − | उम्र होगी पैंसठ से सत्तर के बीच<br>
| |
| − | आँख में चमक से ज्यादा है कीच<br>
| |
| − | नंगे पाँव में फटी बिवाई है<br>
| |
| − | यह किसकी बहन बेटी माई है ?<br>
| |
| − | यह किस घर पैदा हुई<br>
| |
| − | कैसे कैसे यहाँ तक आई है ?<br><br>
| |
| − |
| |
| − |
| |
| − | परसों तक बेच रही थी<br>
| |
| − | टोने-टोटके से बचानेवाला नीबू-मिर्च<br>
| |
| − | उसके पहले कभी बेचती थी कंघी<br>
| |
| − | कभी चूरन कभी गुब्बारे।<br><br>
| |
| − |
| |
| − |
| |
| − | कई दाम के तिरंगे हैं इसके पास<br>
| |
| − | कुछ एकदम सस्ते कुछ अच्छे खास<br><br>
| |
| − |
| |
| − | उस पर भी तैयार है वह मोल-भाव के लिए<br>
| |
| − | हर एक से गिड़गिड़ाती<br>
| |
| − | कभी दिखा कर पिचका पेट<br>
| |
| − | लगा रही है खरीदने की गुहार<br>
| |
| − | कभी दे रही है बुढ़ापे पर तरस की सीख<br>
| |
| − | ऐसे जैसे झंडे के बदले<br>
| |
| − | मांग रही है भीख।<br>
| |
| − |
| |
| − |
| |
| − | मैं आगे निकल आया हूँ<br>
| |
| − | पीछे घिरे हैं काले-काले बादल<br>
| |
| − | बरस सकता है पानी<br>
| |
| − | भीड़ में अलग से सुनाई दे रही है<br>
| |
| − | अब भी बुढ़िया की गुहार थकी पुरानी।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | सड़क के कीचड़ पांक में सनी बुढ़िया<br>
| |
| − | कलेजे से लगा कर <br>
| |
| − | बचा रही रही होगी झंडे की चमक को<br>
| |
| − | और पुकार रही होगी लगातार <br>
| |
| − | हर एक को-<br><br>
| |
| − |
| |
| − | ‘ले लो तिरंगा प्यारा ले लो’<br><br>
| |
| − |
| |
| − |
| |
| − | {{KKGlobal}}
| |
| − | {{KKRachna
| |
| − | |रचनाकार=बोधिसत्व
| |
| − | |संग्रह=
| |
| − | }}
| |
| − |
| |
| − | बाबा नागार्जुन !<br>
| |
| − | तुम पटने, बनारस, दिल्ली में<br>
| |
| − | खोजते हो क्या<br>
| |
| − | दाढ़ी-सिर खुजाते<br>
| |
| − | कब तक होगा हमारा गुजर-बसर<br>
| |
| − | टुटही मँड़ई में लाई-नून चबाके।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | तुम्हारी यह चीलम सी नाक<br>
| |
| − | चौड़ा चेहरा-माथा<br>
| |
| − | सिझी हुई चमड़ी के नीचे<br>
| |
| − | घुमड़े खूब तरौनी गाथा।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | तुम हो हमारे हितू, बुजुरुक<br>
| |
| − | सच्चे मेंठ<br>
| |
| − | घुमंता-फिरंता उजबक्–चतुर<br>
| |
| − | मानुष ठेंठ।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | मिलना इसी जेठ-बैसाख<br>
| |
| − | या अगले अगहन,<br>
| |
| − | देना हमें हड्डियों में<br>
| |
| − | चिर-संचित धातु गहन।<br>
| |
| − |
| |
| − |
| |
| − | {{KKGlobal}}
| |
| − | {{KKRachna
| |
| − | |रचनाकार=बोधिसत्व
| |
| − | |संग्रह=
| |
| − | }}
| |
| − |
| |
| − | (कलकत्ता में मिले बंगाली विद्वान परिमलेंदु ने यह वृत्तांत सुनाया)<br><br>
| |
| − |
| |
| − | बरस रहा था देर से पानी<br>
| |
| − | भीगने से बचने के लिए मैं<br>
| |
| − | रुका था दक्षिण कलकत्ता में<br>
| |
| − | एक पेड़ के नीचे,<br>
| |
| − | वहीं आए पानी से बचते-बचाते<br>
| |
| − | परिमलेंदु बाबू।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | परिमलेंदु बाबू<br>
| |
| − | टैगोर के भक्त थे<br>
| |
| − | बात-चीत के बीच<br>
| |
| − | उन्हों नें बताया टैगोर के बारे में एक किस्सा<br>
| |
| − | आप भी सुनें।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | कभी बीरभूम में चार औरतें रहतीं थीं<br>
| |
| − | उन्हें देख कर लगता था कि वे या तो<br>
| |
| − | किसी मेले में जा रहीं हैं<br>
| |
| − | या लौट रहीं हैं किसी जंगल से।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | वे चारों हरदम साथ रहतीं थीं<br>
| |
| − | उनकी आँखें नहीं थीं<br>
| |
| − | वे बनीं थीं मिट्टी में कपास और भूँसी मिला कर<br>
| |
| − | उनसे आती थी भुने अन्न की महक।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | चारों दिखतीं थी एक सी<br>
| |
| − | एक सी नाक<br>
| |
| − | एक से हाथ-पांव-कान<br>
| |
| − | एक सी थी बोली उनकी।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | कौन था उनका जनक<br>
| |
| − | कौन भर्ता, कौन पुत्र कौन जननी कौन पुत्री<br>
| |
| − | नहीं जानतीं थीं वे<br>
| |
| − | उन्हें तो यह भी नहीं पता था ठीक-ठीक<br>
| |
| − | कि किसने छीन<br>
| |
| − | लीं उनकी आँखें।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | पर उन्हें यह पता था कि<br>
| |
| − | उनके पीछे-पीछे चलते हैं ठाकुर<br>
| |
| − | वही ठाकुर जिन्हें सब<br>
| |
| − | गुरुदेव कह कर बुलाती है<br>
| |
| − | वही द्वारका ठाकुर का आखिरी बेटा<br>
| |
| − | वही जिसे हाथी पाव है<br>
| |
| − | तो वे चारों औरतें<br>
| |
| − | टैगोर के लिए थोड़ा धीमें चलतीं थीं वे।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | उन औरतों की आवाज के सहारे<br>
| |
| − | टैगोर खोजते-पाते थे रास्ता<br>
| |
| − | टैगोर भी हो चले थे अंधे<br>
| |
| − | लोग हैरान थे<br>
| |
| − | टैगोर के अचानक अंधेपन पर।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | लोग टैगोर को उन औरतों से अलग<br>
| |
| − | ले जाना चाहते थे<br>
| |
| − | गाड़ी में बैठा कर<br>
| |
| − | पर टैगोर<br>
| |
| − | उन औरतों की आवाज के अलावा<br>
| |
| − | सुन नहीं रहे थे और कोई आवाज।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | जब कभी टैगोर छूट जाते थे बहुत पीछे<br>
| |
| − | किसी बहाने रुक कर वे चारों<br>
| |
| − | उनके आने का इंतजार करतीं थीं।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | जोड़ा शांको और बीरभूम के लोग बताते हैं<br>
| |
| − | कि जीवन भर टैगोर चलते रहे<br>
| |
| − | उन चारों औरतों की आवाज के सहारे<br>
| |
| − | जब बिछुड़ जाते थे उन औरतों से तो<br>
| |
| − | आव-बाव बकने लगते थे<br>
| |
| − | बिना उन औरतों के उन्हे<br>
| |
| − | कल नहीं पड़ता था<br>
| |
| − | अब यह सब कितना सच है<br>
| |
| − | कितना गढ़ंत यह कौन विचारे।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | यह जरूर था कि<br>
| |
| − | अक्सर पाए जाते थे<br>
| |
| − | टैगोर उन अंधी औरतों के पीछे-पीछे चलते<br>
| |
| − | उनके गुन गाते<br>
| |
| − | बतियाते उनके बारे में।<br>
| |
| − |
| |
| − | बूढ़े परिमलेंदु की माने तो<br>
| |
| − | वे औरते जीवन भर नहीं गईं कहीं ठाकुर<br>
| |
| − | को छोड़ कर<br>
| |
| − | ठाकुर ही उन औरतों का जीवन थे<br>
| |
| − | और वे औरतें ही ठाकुर के चिथड़े मन की<br>
| |
| − | सीवन थीं।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | जब नहीं रहे टैगोर<br>
| |
| − | तो महीनों वे चारों ठाकुर की खोज में<br>
| |
| − | घूमती रहीं बीरभूम के खेतों में<br>
| |
| − | रुक-रुक कर चलतीं थी रास्तों में कि<br>
| |
| − | आ सकता है अंधा गुरु<br>
| |
| − | पर न आए ठाकुर<br>
| |
| − | और वे अंधी औरतें पहुँच गईं<br>
| |
| − | पता नहीं कब<br>
| |
| − | सोना गाछी की गलियों में,<br><br>
| |
| − |
| |
| − | उन्हें तो यह भी पता नहीं चल पाया<br>
| |
| − | कि उनका ठाकुर कब कहाँ<br>
| |
| − | खो गया<br>
| |
| − | कहाँ सो गया उनका सहचर<br>
| |
| − | कल सुबह आता हूँ कह कर<br>
| |
| − | नहीं आया वह<br>
| |
| − | जिसके होने से वे सनाथ थीं।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | पानी बरसना बंद हुआ जान कर परिमलेंदु बाबू<br>
| |
| − | बात अधूरी छोड़ गए<br>
| |
| − | मैंने शलभ श्रीराम सिंह से पूछा तो वे<br>
| |
| − | रोने लगे<br>
| |
| − | कहा सारी बात सच है<br>
| |
| − | पर हुआ था यह सब<br>
| |
| − | राम कृष्ण परम हंस के साथ,<br>
| |
| − | वे चारों अंधी नहीं थीं<br>
| |
| − | वहाँ के किसी जमींदार ने फोड़ दीं थीं<br>
| |
| − | उनकी आँखें काट लिए थे हाथ<br>
| |
| − | खेतों की रखवाली ठीक से ना करने पर।<br>
| |
| − | अंधी होने के बाद वे<br>
| |
| − | हरदम रहीं बेलूर मठ में<br>
| |
| − | परम हंस के साथ।<br>
| |
| − | उसके बाद परम हंस ही थे<br>
| |
| − | उनकी आँखें और हाथ।<br>
| |
| − |
| |
| − | {{KKGlobal}}
| |
| − | {{KKRachna
| |
| − | |रचनाकार=बोधिसत्व
| |
| − | |संग्रह=
| |
| − | }}
| |
| − |
| |
| − |
| |
| − | पिता थोड़े दिन और जीना चाहते थे<br>
| |
| − | वे हर मिलने वाले से कहते कि<br>
| |
| − | बहुत नहीं दो साल तीन साल और मिल जाता बस।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | वे जिंदगी को ऐसे माँगते थे जैसे मिल सकती हो<br>
| |
| − | किराने की दुकान पर।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | उनकी यह इच्छा जान गए थे उनके डॉक्टर भी<br>
| |
| − | सब ने पूरी कोशिश की पिता को बचाने की<br>
| |
| − | पर कुछ भी काम नहीं आया।<br><br>
| |
| − |
| |
| − | माँ ने मनौतियाँ मानी कितनी<br>
| |
| − | मैहर की देवी से लेकर काशी विश्वनाथ तक<br>
| |
| − | सबसे रोती रही वह अपने सुहाग को<br>
| |
| − | ध्रुव तारे की तरह<br>
| |
| − | अटल करने के लिए<br>
| |
| − | पर उसकी सुनवाई नहीं हुई कहीं...।<br><br>
| |
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| − | 1997 में<br>
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| − | जाड़ों के पहले पिता ने छोड़ी दुनिया<br>
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| − | बहन ने बुना था उनके लिए लाल इमली का<br>
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| − | पूरी बाँह का स्वेटर<br>
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| − | उनके सिरहाने बैठ कर<br>
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| − | डालती रही स्वेटर<br>
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| − | में फंदा कि शायद<br>
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| − | स्वेटर बुनता देख मौत को आए दया,<br>
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| − | भाई ने खरीदा था कंबल<br>
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| − | पर सब कुछ धरा रह गया<br>
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| − | घर पर ......<br><br>
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| − | बाद में ले गए महापात्र सब ढोकर।<br><br>
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| − | पिता ज्यादा नहीं 2001 कर जीना चाहते थे<br>
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| − | दो सदियों में जीने की उनकी साध पुजी नहीं<br>
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| − | 1936 में जन्में पिता जी तो सकते थे 2001 तक<br>
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| − | पर देह ने नहीं दिया उनका साथ<br>
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| − | दवाएँ उन्हें मरने से बचा न सकीं ।<br><br>
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| − | इच्छाएँ कई और थीं पिता की<br>
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| − | जो पूरी नहीं हुईं<br>
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| − | कई और सपने थे ....अधूरे....<br>
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| − | वे तमाम अधूरे सपनों के साथ भी जीने को तैयार थे<br>
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| − | पर नहीं मिले उन्हें तीन-चार साल<br>
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| − | हार गए पिता<br>
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| − | जीत गया काल ।<br><br><br>
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| − | (रचना तिथि- 13 अक्टूबर 2007}br><br>
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| − | {{KKGlobal}}
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| − | |रचनाकार=बोधिसत्व
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| − | वह बहुत पुरानी एक रात<br>
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| − | जिसमें सम्भव हर एक बात,<br>
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| − | जिसमें अंधड़ में छुपी वात,<br>
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| − | सोई चूल्हे में जली रात,<br>
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| − | वह बहुत पुरानी बिकट रात ।<br><br>
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| − | जिसमें हाथों के पास हाथ,<br>
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| − | जिसमें माथे को छुए माथ,<br>
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| − | जिसमें सोया वह वृद्ध ग्राम,<br>
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| − | महुआ,बरगद,पीपल व आम,<br>
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| − | इक्का-दुक्का जलते चिराग<br>
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| − | पत्तल पर परसे भोग-भाग ।<br><br>
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| − | वह बहुत पुरानी एक बात,<br>
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| − | जिसमें धरती को नवा माथ,<br>
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| − | वो बीज बो रहे चपल हाथ,<br>
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| − | वो रस्ते जिन पर एक साथ<br>
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| − | जाता था दिन आती थी रात<br>
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| − | वह बहुत पुरानी एक रात ।<br><br>
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