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"पास और दूर / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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| − | |संग्रह=आँगन के पार द्वार / अज्ञेय | + | |संग्रह=अरी ओ करुणा प्रभामय / अज्ञेय; आँगन के पार द्वार / अज्ञेय |
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| + | जो जड़े काट, मिट्टी उपाट, | ||
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| + | मिटा गये अस्तित्व, | ||
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| − | + | '''देहरादून, 24 अगस्त, 1959''' | |
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12:49, 9 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
जो पास रहे
वे ही तो सबसे दूर रहे :
प्यार से बार-बार
जिन सब ने उठ-उठ हाथ और झुक-झुक कर पैर गहे,
वे ही दयालु, वत्सल स्नेही तो
सब से क्रूर रहे।
जो चले गये
ठुकरा कर हड्डी-पसली तोड़ गये
पर जो मिट्टी
उन के पग रोष-भरे खूँदते रहे,
फिर अवहेला से रौंद गये :
उसको वे ही एक अनजाने नयी खाद दे गाड़ गये :
उसमें ही वे एक अनोखा अंकुर रोप गये।
-जो चले गये, जो छोड़ गये,
जो जड़े काट, मिट्टी उपाट,
चुन-चुन कर डाल मरोड़ गये
वे नहर खोद कर अनायास
सागर से सागर जोड़ गये
मिटा गये अस्तित्व,
किन्तु वे
जीवन मुझको सौंप गये।
देहरादून, 24 अगस्त, 1959

