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| + | * दर्द को एक ज़ुबान देते हैं - बक़लम खुद / बी. आर. विप्लवी | ||
| + | * दो लफ्ज़ - भूमिका / बी. आर. विप्लवी | ||
| + | * उम्दा ग़ज़लों की किताब - भूमिका / बी. आर. विप्लवी | ||
| + | * उसका अहद-ए- वफ़ा मज़हका सा लगे / बी. आर. विप्लवी | ||
| + | * पतंगों की उड़ानों को यहीं पर मात होती है / बी. आर. विप्लवी | ||
| + | * भोले बचपन की लड़कपन की निशानी ले गया / बी. आर. विप्लवी | ||
| + | * शहर सन्नाटा हुआ है क्या करें / बी. आर. विप्लवी | ||
| + | * बढ़ते ही गए राह पे मुड़कर नहीं देखा / बी. आर. विप्लवी | ||
| + | * जहेज़ों के लिए जब लौटकर बारात जाती है / बी. आर. विप्लवी | ||
| + | * जिंदगी जंग है मिलके सर कीजिए / बी. आर. विप्लवी | ||
| + | * दिल की दुनिया का सुकूँ बेचैनियाँ ले जाएँगी / बी. आर. विप्लवी | ||
| + | * दिया हूँ मैं मुझे सूरज का हम सफ़र कर दे / बी. आर. विप्लवी | ||
| + | * अगर तस्कीन हो जाए तो हैरानी नहीं जाती / बी. आर. विप्लवी | ||
| + | * आज मौसम सुहाना ज़हर हो गया / बी. आर. विप्लवी | ||
| + | * दरपन देख के डरने लगा / बी. आर. विप्लवी | ||
22:44, 30 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
सुबह की उम्मीद

| रचनाकार | बी. आर. विप्लवी |
|---|---|
| प्रकाशक | वाणी प्रकाशन |
| वर्ष | 2004 |
| भाषा | हिन्दी |
| विषय | |
| विधा | ग़ज़ल |
| पृष्ठ | 136 |
| ISBN | |
| विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- उम्र की दास्तान लंबी है / बी. आर. विप्लवी
- दूर से ही क़रीब लगते हैं / बी. आर. विप्लवी
- इबादतख़ाने ढाए जा रहे हैं / बी. आर. विप्लवी
- आँख का फ़ैसला दिल की तज्वीज़ है / बी. आर. विप्लवी
- तू हज़ारों ख़्वाहिशों में बँट गई / बी. आर. विप्लवी
- मुझे वह इस तरह से तोलता है / बी. आर. विप्लवी
- जहाँ शीशे तराशे जा रहे हैं / बी. आर. विप्लवी
- ख़ामुशी से बयान देते हैं / बी. आर. विप्लवी
- थक गई है नज़र फिर भी उम्मीद है / बी. आर. विप्लवी
- ये कौन हवाओं में ज़हर घोल रहा है / बी. आर. विप्लवी
- ज़रूरत के मुताबिक़ चेहरे लेकर साथ चलता है / बी. आर. विप्लवी
- दर्द को एक ज़ुबान देते हैं - बक़लम खुद / बी. आर. विप्लवी
- दो लफ्ज़ - भूमिका / बी. आर. विप्लवी
- उम्दा ग़ज़लों की किताब - भूमिका / बी. आर. विप्लवी
- उसका अहद-ए- वफ़ा मज़हका सा लगे / बी. आर. विप्लवी
- पतंगों की उड़ानों को यहीं पर मात होती है / बी. आर. विप्लवी
- भोले बचपन की लड़कपन की निशानी ले गया / बी. आर. विप्लवी
- शहर सन्नाटा हुआ है क्या करें / बी. आर. विप्लवी
- बढ़ते ही गए राह पे मुड़कर नहीं देखा / बी. आर. विप्लवी
- जहेज़ों के लिए जब लौटकर बारात जाती है / बी. आर. विप्लवी
- जिंदगी जंग है मिलके सर कीजिए / बी. आर. विप्लवी
- दिल की दुनिया का सुकूँ बेचैनियाँ ले जाएँगी / बी. आर. विप्लवी
- दिया हूँ मैं मुझे सूरज का हम सफ़र कर दे / बी. आर. विप्लवी
- अगर तस्कीन हो जाए तो हैरानी नहीं जाती / बी. आर. विप्लवी
- आज मौसम सुहाना ज़हर हो गया / बी. आर. विप्लवी
- दरपन देख के डरने लगा / बी. आर. विप्लवी

