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"पहाड़ / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
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| + | गुरूत्वाकर्षण तो धरती में है | ||
| + | फिर क्यों खींचते हैं पहाड़ | ||
| + | जिसे देखो | ||
| + | उधर ही भागा जा रहा है | ||
| − | पहाड़ | + | बादल |
| + | पहाडों को भागते हैं | ||
| + | चाहे | ||
| + | बरस जाना पडे टकराकर | ||
| + | हवा | ||
| + | पहाड़ को जाती है | ||
| + | टकराती है ओर मुड जाती है | ||
| + | सूरज सबसे पहले | ||
| + | पहाड़ छूता है | ||
| + | भेदना चाहता है उसका अंधेरा | ||
| + | चांदनी वहीं विराजती है | ||
| + | पड जाती है धूमिल | ||
| − | + | पर | |
| − | + | पेडों को देखे | |
| − | + | कैसे चढे जा रहे | |
| − | + | जमे जा रहे | |
| − | + | जाकर | |
| − | + | चढ तो कोई भी सकता है पहाड | |
| − | + | पर टिकता वही है | |
| − | + | जिसकी जडें हो गहरी | |
| − | जो | + | जो चटटानों का सीना चीर सकें |
| − | + | उन्हें माटी कर सकें | |
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| − | + | बादलों की तरह | |
| − | + | उडकर | |
| − | + | जाओगे पहाड तक | |
| − | + | तो | |
| − | + | नदी की तरह | |
| − | + | उतार देंगे पहाड | |
| − | + | हाथों में मुटठी भर रेत थमा कर। | |
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00:27, 14 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण
गुरूत्वाकर्षण तो धरती में है
फिर क्यों खींचते हैं पहाड़
जिसे देखो
उधर ही भागा जा रहा है
बादल
पहाडों को भागते हैं
चाहे
बरस जाना पडे टकराकर
हवा
पहाड़ को जाती है
टकराती है ओर मुड जाती है
सूरज सबसे पहले
पहाड़ छूता है
भेदना चाहता है उसका अंधेरा
चांदनी वहीं विराजती है
पड जाती है धूमिल
पर
पेडों को देखे
कैसे चढे जा रहे
जमे जा रहे
जाकर
चढ तो कोई भी सकता है पहाड
पर टिकता वही है
जिसकी जडें हो गहरी
जो चटटानों का सीना चीर सकें
उन्हें माटी कर सकें
बादलों की तरह
उडकर
जाओगे पहाड तक
तो
नदी की तरह
उतार देंगे पहाड
हाथों में मुटठी भर रेत थमा कर।

