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"अनुगूँज / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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| + | परदे में सच्चाई | ||
| + | चोर-चोर, मौसेरे भाई | ||
| + | जाति -धर्म- स्वार्थ | ||
| + | और ख़तरनाक वज़हें | ||
| + | क्या -क्या चीज़ें | ||
| + | प्रयेाग में आयीं | ||
| + | तुला की जगह | ||
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| + | घटिया पैमाना | ||
| + | मापदण्ड की बात करता है | ||
| + | वेा कब का | ||
| + | देखना छोड़ चुका है | ||
| + | जो रोशनी का | ||
| + | सवाल उठाता है | ||
| + | जो अपने एक मुट्ठी | ||
| + | फ़ायदे के लिए | ||
| + | पूरी धरती को | ||
| + | बंजर करने पर | ||
| + | आमादा है | ||
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| + | ताक़त उसके हाथ में है | ||
| + | जिसकी बस्ती वीरान है | ||
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| + | से दूर है | ||
| + | जो बेफ़िक़्र है कि | ||
| + | बाप बच्चे की ज़िद पर | ||
| + | खिलौने लाता है तो | ||
| + | पेट की रोटियाँ काटकर | ||
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| + | काश, संवेदनाऍ | ||
| + | नदियों की अँजुरी से निकलतीं | ||
| + | और पहाड़ों के शीर्ष को छूतीं | ||
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14:25, 1 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
धमाका होता है तो
अनुगूँज कई स्वरों में
बाहर होती है
एकः
दुश्मन की धुलाई
दोः
राजनीतिक लड़ाई
बदले की कार्रवाई
तीनः
परदे में सच्चाई
चोर-चोर, मौसेरे भाई
जाति -धर्म- स्वार्थ
और ख़तरनाक वज़हें
क्या -क्या चीज़ें
प्रयेाग में आयीं
तुला की जगह
घटिया पैमाना
मापदण्ड की बात करता है
वेा कब का
देखना छोड़ चुका है
जो रोशनी का
सवाल उठाता है
जो अपने एक मुट्ठी
फ़ायदे के लिए
पूरी धरती को
बंजर करने पर
आमादा है
ताक़त उसके हाथ में है
जिसकी बस्ती वीरान है
जो बच्चों की किलकारियों
से दूर है
जो बेफ़िक़्र है कि
बाप बच्चे की ज़िद पर
खिलौने लाता है तो
पेट की रोटियाँ काटकर
काश, संवेदनाऍ
नदियों की अँजुरी से निकलतीं
और पहाड़ों के शीर्ष को छूतीं

