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"सहिष्णुता / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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| + | रु़ख़ बदल देती हैं | ||
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| + | हत्यारी हताशायें | ||
| + | इतिहास के पन्नों में | ||
| + | दम तोड़ती हैं | ||
| + | और बच्चा - बच्चा | ||
| + | ‘महात्मा’ की दया का | ||
| + | पाठ पढ़ता है | ||
| + | तहज़ीब हर भाषा का | ||
| + | उत्तर देना जानती है | ||
| + | वरना , गुब्बारे | ||
| + | हवाओं में | ||
| + | उड़ना छोड़ देते | ||
| + | और फूल | ||
| + | काँटों में खिलने की | ||
| + | जुर्रत नहीं करते | ||
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| + | मुट्ठी भर | ||
| + | अराजक तत्व | ||
| + | एक बड़ी आबादी को | ||
| + | तब तक नोक पर लिए हैं | ||
| + | जब तक सहिष्णुता | ||
| + | विस्फोट नहीं करती | ||
| + | और नये मानक | ||
| + | तैयार नहीं होते | ||
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| + | बर्थ-डे पर | ||
| + | केक काटने वाला चाकू | ||
| + | केक और कलेजे में | ||
| + | फ़र्क़ करना छोड़ दे | ||
| + | उससे पहले | ||
| + | डरे हुए आदमी की | ||
| + | सब्र का | ||
| + | इम्तहान लेना | ||
| + | छोड़ दे | ||
| + | क्योंकि डर के बाद | ||
| + | खोने के लिए | ||
| + | और कुछ नहीं होता | ||
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22:22, 1 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
घटनाएँ नतीज़े का
रु़ख़ बदल देती हैं
सच्चाई नहीं
हत्यारी हताशायें
इतिहास के पन्नों में
दम तोड़ती हैं
और बच्चा - बच्चा
‘महात्मा’ की दया का
पाठ पढ़ता है
तहज़ीब हर भाषा का
उत्तर देना जानती है
वरना , गुब्बारे
हवाओं में
उड़ना छोड़ देते
और फूल
काँटों में खिलने की
जुर्रत नहीं करते
मुट्ठी भर
अराजक तत्व
एक बड़ी आबादी को
तब तक नोक पर लिए हैं
जब तक सहिष्णुता
विस्फोट नहीं करती
और नये मानक
तैयार नहीं होते
बर्थ-डे पर
केक काटने वाला चाकू
केक और कलेजे में
फ़र्क़ करना छोड़ दे
उससे पहले
डरे हुए आदमी की
सब्र का
इम्तहान लेना
छोड़ दे
क्योंकि डर के बाद
खोने के लिए
और कुछ नहीं होता

