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00:39, 12 जून 2008 का अवतरण
यह कदमताल था
हर कदमताल की तरह
एक ही जगह पर।
झण्डा भी लहरा रहा था मुस्तैदी से
एक ही जगह पर।
नेता भी खड़ा था
एक ही जगह पर
तमाम उपलब्धियाँ, तमाम सफलताएँ,
तरह-तरह के दस्तावेज़ों में
पेश हो रही थीं
एक ही जगह पर।
कितना सुकून मिल रहा है
जिन्हें जल्दी थी कहीं पहुँचने की
इस सच्चाई तक आसानी से पहुँचने में
कि अच्छा है कहीं नहीं पहुँच पाने की निस्बत
खड़े रहना है एक ही जगह पर।
सारी लड़ाई अब इसी को लेकर
किस तरह टिके रहा जाए
एक ही जगह पर।

