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"अभिशप्त अप्सरा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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| + | पथ में सिर्फ़ आग। | ||
| + | तुम्हें क्या मिला | ||
| + | छीनकर चाँदनी! | ||
| + | कुंठा तुम्हारी | ||
| + | प्रसाद बन मिली | ||
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| + | वह रूप की कली | ||
| + | आज जो देखी | ||
| + | वह उदास परी | ||
| + | रो उठा मन | ||
| + | प्रभु से मैं माँगता- | ||
| + | सुख उसको मिले ! | ||
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14:18, 21 जून 2018 के समय का अवतरण
भावों की नदी
प्रेम नीर से भरी
छलकती थीं
तटों को तोड़कर
बना ही दिया
तुम्हारी ही वाणी ने
प्रियात्मा को भी
अभिशप्त अप्सरा।
छीने थे भाव
कुचला अनुराग
बिछाते रहे
पथ में सिर्फ़ आग।
तुम्हें क्या मिला
छीनकर चाँदनी!
कुंठा तुम्हारी
प्रसाद बन मिली
मुर्झाती गई
वह रूप की कली
आज जो देखी
वह उदास परी
रो उठा मन
प्रभु से मैं माँगता-
सुख उसको मिले !

