भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वधू का शृंगार / ये लहरें घेर लेती हैं / मधु शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधु शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
01:45, 24 जनवरी 2019 के समय का अवतरण
उसे बैठाया गया है बीचोबीच
वह घिरी बैठी है-
उसके हाथों पर मेहँदी
और उबटन से
निखारी जाती देह
पूरी कोशिश में है नाइन
कि बालों की चमक
कुछ और खिले
कुछ और गोपनीय ज़रूरतों को पूरने
प्रस्तुत हैं सखियाँ
वह खुद भी बैठी है
खुद को प्रस्तुत-
जैसे
पोंछती हो प्रेम से
कोई अनकहा अतीत
छिपा हुआ मन में।

