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"वधू का शृंगार / ये लहरें घेर लेती हैं / मधु शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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01:45, 24 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

उसे बैठाया गया है बीचोबीच

वह घिरी बैठी है-
उसके हाथों पर मेहँदी
और उबटन से
निखारी जाती देह

पूरी कोशिश में है नाइन
कि बालों की चमक
कुछ और खिले

कुछ और गोपनीय ज़रूरतों को पूरने
प्रस्तुत हैं सखियाँ

वह खुद भी बैठी है
खुद को प्रस्तुत-
जैसे
पोंछती हो प्रेम से
कोई अनकहा अतीत
छिपा हुआ मन में।