भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इधर भी तो देखो / मुकेश निर्विकार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश निर्विकार |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:48, 20 जुलाई 2019 के समय का अवतरण

सैसेक्स
जी.डी.पी.
डेवलपमेंट
आदि-आदि का
दिन-रात
हो-हल्ला मचाने वालों,
सुनो!

ऊँची-ऊँची इमारतों,
बहू मंज़िला, फ्लेटो,
हाई-वे व एक्सप्रेस वे,
चमाचम कारों तथा
चकाचोंध बाज़ारों
से जरा अपनी नजर हटाकर
इधर भी तो देखो-


वहाँ,
हाँ वहाँ,
सामने
‘बुद्धन की खोली में
किशोरवय उसकी ‘मुनिया’
रजस्वला है आज
मगर,
झोंपड़ी में उसके/कोई
फालतू
‘लत्ता’ नहीं है!