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पता नहीं वे मित्र हमारे,
कहाँ गए सारे के सारे।
क्लास तीन में पढ़ती मीना,
क्लास चार में राम खिलान।
क्लास पाँच में दुर्गा काछी,
छटवीं का अब्दुल रहमान।
नहीं मिल रहा कहीं एक भी,
ढूँढ़-ढूँढ़ कर हम तो हारे।
नहीं पता कितने ज़िंदा हैं,
कितने छोड़ चुके संसार।
सफल हुआ कितनों का जीवन,
कितनों का बीता बेकार
कितने हैं जी रहे ठाठ से,
जीवित कितने बिना सहारे।
बीते जाते हैं, दिन पर दिन,
यादों की बढ़ रही गठान।
बिना बताए कितने सारे,
छोड़-छोड़ कर गए दुकान।
कितने खोए भीड़ भाड़ में,
कितने बने गगन के तारे।

