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11:28, 18 फ़रवरी 2009 का अवतरण

अरी, ओ!
मेरी अपाहज सदी
ऊंघती न रह जाना
तेरे बुरे दिनों में
एक बाज़ार के बहरूपिये
तेरे द्वार आयेंगे_
तेरे द्वार आयेंगे
और तेरे बच्चों के हाथों मे
झुनझुने देकर
उनके सपने
छीन ले जायेंग़े