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जिनके लिए कविता
विज्ञापनी धुन में
ख़ुशबूदार बालों के साथ
लहराता जुमला है
वे कविता से उतनी ही दूर हैं
जितनी दूर नारों से कविता
त्रासदी यह हमारे दौर की
कविता में जज़्ब हो रहा है इश्तिहार
इश्तिहार बेच लेते हैं जरूरतें
ये जो तीर हैं एहसास के
उनकी कमान कब बनोगी
कविता!
तुम बुखार में तपते आदमी का
बयान कब बनोगी?

