भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धरती माँ के बच्चे / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश कौशिक |संग्रह=151 बाल-कविताएँ / रमेश कौशिक }} {{KKC…)
(कोई अंतर नहीं)

22:59, 21 जून 2010 का अवतरण

ये जो देख रहो हो
तुम फूलों के गुच्छे
ये भी हैं तुम जैसे
धरती माँ के बच्चे।

इन्हें देखकर मधुर
गीत, पंछी गाते हैं
थकी हुई आँखों में
सपने तिर जाते हैं।
 
उजली रातों में ये
लगते नभ के तारे
दिन में इंद्रधनुष-से
मोहक प्यारे-प्यारे।

जब तक ये हैं,तब तक
भू पर सुंदरता है
भोली-भाली परियों
की-सी कोमलता है।

पौधों की डालों पर
इनको मुसकाने दो,
दुनिया के आँगन में
ख़ुशबू भर जाने दो।