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"गाँव / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर
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| + | और तू ओस भीगी चाँदनी में | ||
| + | नहाना चाहता है | ||
| + | तो आ मेरे पास आ | ||
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| + | बसों के पीछे भागते-भागते | ||
| + | अगर तेरी साँस | ||
| + | डीज़ल के धूएं से | ||
| + | रुँध गयी है | ||
| + | और बाँहों में | ||
| + | वासन्ती भर | ||
| + | कुछ दिन | ||
| + | जीना चाहता है | ||
| + | तो आ मेरे पास आ | ||
18:56, 24 जून 2010 के समय का अवतरण
गाँव
परों के नीचे
सीमेन्ट देखते-देखते
अगर तू ऊब गया है
और हरी दूब पर
दौड़ना चाहता है
तो आ मेरे पास आ
दिन रात
ट्यूब लाइट के नीचे
फाइलें पढ़ते-पढ़ते
अगर अगर आँखे चुंधिया गयी हैं
और तू ओस भीगी चाँदनी में
नहाना चाहता है
तो आ मेरे पास आ
बसों के पीछे भागते-भागते
अगर तेरी साँस
डीज़ल के धूएं से
रुँध गयी है
और बाँहों में
वासन्ती भर
कुछ दिन
जीना चाहता है
तो आ मेरे पास आ

