भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"फिसल रही चांदनी / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
| (इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
| पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन | |संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन | ||
}} | }} | ||
| − | + | {{KKCatKavita}} | |
| − | + | <poem> | |
| − | पीपल के पत्तों पर फिसल रही | + | पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी |
| − | + | ||
नालियों के भीगे हुए पेट पर, पास ही | नालियों के भीगे हुए पेट पर, पास ही | ||
| − | + | जम रही, घुल रही, पिघल रही चाँदनी | |
| − | जम रही, घुल रही, पिघल रही | + | |
| − | + | ||
पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर-- | पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर-- | ||
| + | चमक रही, दमक रही, मचल रही चाँदनी | ||
| + | दूर उधर, बुर्जों पर उछल रही चाँदनी | ||
| − | + | आँगन में, दूबों पर गिर पड़ी-- | |
| − | + | अब मगर किस कदर संभल रही चाँदनी | |
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | अब मगर किस कदर संभल रही | + | |
| − | + | ||
पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर | पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर | ||
| − | + | नाच रही, कूद रही, उछल रही चाँदनी | |
| − | नाच रही, कूद रही, उछल रही | + | |
| − | + | ||
वो देखो, सामने | वो देखो, सामने | ||
| + | पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी | ||
| − | + | (१९७६) | |
| − | + | </poem> | |
| − | + | ||
| − | (१९७६ | + | |
11:56, 18 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी
नालियों के भीगे हुए पेट पर, पास ही
जम रही, घुल रही, पिघल रही चाँदनी
पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर--
चमक रही, दमक रही, मचल रही चाँदनी
दूर उधर, बुर्जों पर उछल रही चाँदनी
आँगन में, दूबों पर गिर पड़ी--
अब मगर किस कदर संभल रही चाँदनी
पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर
नाच रही, कूद रही, उछल रही चाँदनी
वो देखो, सामने
पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी
(१९७६)

