भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बीती विभावरी जाग री / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
| पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद | |रचनाकार=जयशंकर प्रसाद | ||
| − | |||
| − | |||
}} | }} | ||
{{KKPrasiddhRachna}} | {{KKPrasiddhRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
| − | बीती विभावरी जाग री ! | + | बीती विभावरी जाग री! |
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | अम्बर पनघट में डुबो रही | |
| − | + | तारा-घट ऊषा नागरी! | |
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | अधरों में राग अमंद पिए | + | खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा |
| − | अलकों में मलयज बंद किए | + | किसलय का अंचल डोल रहा |
| − | + | लो यह लतिका भी भर लाई- | |
| − | + | मधु मुकुल नवल रस गागरी | |
| + | |||
| + | अधरों में राग अमंद पिए | ||
| + | अलकों में मलयज बंद किए | ||
| + | तू अब तक सोई है आली | ||
| + | आँखों में भरे विहाग री! | ||
</poem> | </poem> | ||
21:51, 8 जुलाई 2013 का अवतरण
बीती विभावरी जाग री!
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी!
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा
लो यह लतिका भी भर लाई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी
अधरों में राग अमंद पिए
अलकों में मलयज बंद किए
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री!

