"शब्द मेरे हैं / प्रतिभा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
अनूप.भार्गव (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रतिभा सक्सेना }} <poem> </poem>) |
अनूप.भार्गव (चर्चा | योगदान) |
||
| पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}} | }} | ||
<poem> | <poem> | ||
| + | शब्द मेरे हैं | ||
| + | अर्थ मैंने ही दिये ये शब्द मेरे हैं ! | ||
| + | व्यक्ति औ अभिव्यक्ति को एकात्म करते जो , | ||
| + | यों कि मेरे आत्म का प्रतिरूप धरते हों ! | ||
| + | स्वरित मेरे स्वत्व के | ||
| + | मुखरित बसेरे हैं ! | ||
| + | शब्द मेरे हैं ! | ||
| + | * | ||
| + | स्वयं वाणी का कलामय तंत्र अभिमंत्रित, | ||
| + | लग रहा ये प्राण ही शब्दित हुये मुखरित, | ||
| + | सृष्टि के संवेदनों की चित्र-लिपि धारे | ||
| + | सहज ही सौंदर्य के वरदान से मंडित ! | ||
| + | शाम है विश्राममय | ||
| + | मुखरित सबेरे हैं ! | ||
| + | शब्द मेरे हैं ! | ||
| + | * | ||
| + | बाँसुरी ,उर-तंत्र में झंकार भरती जो , | ||
| + | अतीन्द्रिय अनुभूति बन गुंजार करती जो | ||
| + | निराकार प्रकार को साकार करते जो | ||
| + | मनोमय हर कोश के | ||
| + | सकुशल चितेरे हैं ! | ||
| + | शब्द मेरे हैं ! | ||
| + | * | ||
| + | व्याप्ति है ''मैं' की जहाँ तक विश्व- दर्पण में , | ||
| + | प्राप्ति है जितनी कि निजता के समर्पण में | ||
| + | भूमिका धारे वहन की अर्थ-तत्वों के, | ||
| + | अंजली भर -भर दिशाओं ने बिखेरे हैं ! | ||
| + | |||
| + | पूर्णता पाकर अहेतुक प्रेम से लहरिल | ||
| + | मनःवीणा ने अमल स्वर ये बिखेरे हैं ! | ||
| + | ध्वनि समुच्चय ही न | ||
| + | इनके अर्थ गहरे हैं ! | ||
| + | शब्द मेरे हैं ! | ||
| + | प्रतिभा. | ||
| + | शब्द मेरे हैं ! | ||
</poem> | </poem> | ||
08:47, 28 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
शब्द मेरे हैं
अर्थ मैंने ही दिये ये शब्द मेरे हैं !
व्यक्ति औ अभिव्यक्ति को एकात्म करते जो ,
यों कि मेरे आत्म का प्रतिरूप धरते हों !
स्वरित मेरे स्वत्व के
मुखरित बसेरे हैं !
शब्द मेरे हैं !
स्वयं वाणी का कलामय तंत्र अभिमंत्रित,
लग रहा ये प्राण ही शब्दित हुये मुखरित,
सृष्टि के संवेदनों की चित्र-लिपि धारे
सहज ही सौंदर्य के वरदान से मंडित !
शाम है विश्राममय
मुखरित सबेरे हैं !
शब्द मेरे हैं !
बाँसुरी ,उर-तंत्र में झंकार भरती जो ,
अतीन्द्रिय अनुभूति बन गुंजार करती जो
निराकार प्रकार को साकार करते जो
मनोमय हर कोश के
सकुशल चितेरे हैं !
शब्द मेरे हैं !
व्याप्ति है मैं' की जहाँ तक विश्व- दर्पण में ,
प्राप्ति है जितनी कि निजता के समर्पण में
भूमिका धारे वहन की अर्थ-तत्वों के,
अंजली भर -भर दिशाओं ने बिखेरे हैं !
पूर्णता पाकर अहेतुक प्रेम से लहरिल
मनःवीणा ने अमल स्वर ये बिखेरे हैं !
ध्वनि समुच्चय ही न
इनके अर्थ गहरे हैं !
शब्द मेरे हैं !
प्रतिभा.
शब्द मेरे हैं !

