भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हवाओं से लिपटकर / वाज़दा ख़ान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वाज़दा ख़ान |संग्रह=जिस तरह घुलती है काया / वाज़…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:24, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण
देखूँगी जाकर वहाँ पीली पाती
जो हवा से लिपट कर उड़ आई
ब्रह्माण्ड के उस ग्रह से
जहाँ बुद्ध का वास है । क्या भगवान
उसे यहाँ हरीतिमा प्रदान करेंगे ?
मिल गया जो उए यह जीवनदान
तो ढूँढेगी वह एक दूसरा जीवन जो
भटक रहा है अनन्तकाल से रेगिस्तान
के बवण्डरों में
खोज नहीं पा रहा वह अपनी सीमा
तय नहीं कर पा रहा वह अप॔नी दिशा
ढूँढ नहीं पा रहा वह अपना स्वत्व ।

