भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नबतुरिये आबओ आगाँ... / यात्री" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=यात्री |अनुवादक= |संग्रह=पत्रहीन ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:49, 16 जुलाई 2014 के समय का अवतरण

तीव्रगंधी तरल मोबाइल
क्षणस्पंदी जीवन
एक-एक सेकेण्ड बान्हल।
स्थायी - संचारी - उद्दीपन - आलंबन.....
सुनियन्त्रित एक-एक भाव।
परकीय - परकीया सोहाइ छइ ककरा नहि।
खंड प्रीतिक सोन्हगर उपायन।
असह्म नहि कुमारी विधवाक सौभाग्य
असह्म नहि गृही चिरकुमारक दागल ब्रह्मचर्य
सरिपहुँ सभ केओ सर्वतंत्र
रोक टोक नहिए कथूक ककरो
रखने रहू, बेर पर आओत काज
अमौट क पुरान धड़िका...
धर्म - अर्थ - काम - मोक्ष।
पघिलओ नीक जकाँ सनातन आस्था
पाकओ नीक जकाँ चेतन कुम्हारक नबका बासन
युग सत्यक आबामेँ
जूनि करी परिबाहि बूढ़ बहर कानक
टटका मन्त्र थोक,
नबतुरिए आबओ आगाँ।
उएह करत रूढ़िभंजन, आगू मुहेँ बढ़त उएह....
हमरा लोकनि दिअइ आशीर्वाद निश्छल मानोँ;
घिचिअइ नहि टाङ पाछाँ.....
ढेकी नहि कूटी अपनहि अमरत्वटाक....