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"तुम आयीं / केदारनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर
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| + | जैसे धूप में धीरे- धीरे | ||
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| − | + | तुमने मुझे पकाया | |
| − | + | और इस तरह | |
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| − | + | तुमने मुझे खुद से अलगाया।</poem> | |
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| − | जैसे दाने अलगाये जाते है भूसे से | + | |
| − | तुमने मुझे खुद से | + | |
11:14, 21 जनवरी 2023 के समय का अवतरण
तुम आयीं
जैसे छीमियों में धीरे- धीरे
आता है रस
जैसे चलते - चलते एड़ी में
काँटा जाए धँस
तुम दिखीं
जैसे कोई बच्चा
सुन रहा हो कहानी
तुम हँसी
जैसे तट पर बजता हो पानी
तुम हिलीं
जैसे हिलती है पत्ती
जैसे लालटेन के शीशे में
काँपती हो बत्ती !
तुमने छुआ
जैसे धूप में धीरे- धीरे
उड़ता है भुआ
और अन्त में
जैसे हवा पकाती है गेहूँ के खेतों को
तुमने मुझे पकाया
और इस तरह
जैसे दाने अलगाये जाते है भूसे से
तुमने मुझे खुद से अलगाया।

