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कवि से / गोपीकृष्ण 'गोपेश'

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रे कवि, तूने गीत सुनाए —

जिनके स्वर-स्वर में जीवन था,
जिनके स्वर-स्वर में यौवन था,
जिनके स्वर-स्वर में श्वासों में
कुछ सिहरन थी, कुछ कम्पन था,
जिनके स्वर-स्वर बादल बनकर
नयनों के सावन में छाए !
रे कवि, तूने गीत सुनाए !!