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लाजो / देवी प्रसाद मिश्र

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पता नहीं है लाजो का
यहीं कहीं मरती खपती थी कहाँ गई

अभी हाल में ही देखा था
घूम रहा रेपिस्ट गली के पार कहीं

वह भुवनेश्वर से आई थी
नाम था रज़िया नाम बदलकर काम मिला था झाड़ू-पोंछा

पतली-सी थी बात करो तो हँस देती थी
इतना हँसती थी कि लगता फँस सकती थी

वह है ग़ायब तो उसको क्यों ढूँढ़ा जाए
और बहुत से काम पुलिस के पास देश के पास

उन्हें निपटाया जाए
शोर नहीं कम होता लगता

इन चैनल के बाजों का
पता नहीं है लाजो का