भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कीजो प्रीत खरी / मीराबाई
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:19, 6 दिसम्बर 2006 का अवतरण
| रचना संदर्भ | रचनाकार: | मीराबाई | |
| पुस्तक: | प्रकाशक: | ||
| वर्ष: | पृष्ठ संख्या: | ||
बादल देख डरी हो, स्याम! मैं बादल देख डरी।
श्याम मैं बादल देख डरी।
काली-पीली घटा ऊमड़ी बरस्यो एक घरी।
श्याम मैं बादल देख डरी।
जित जाऊँ तित पाणी पाणी हुई भोम हरी।।
जाका पिय परदेस बसत है भीजूं बाहर खरी।
श्याम मैं बादल देख डरी।
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी कीजो प्रीत खरी।
श्याम मैं बादल देख डरी।

