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किसान आ कवि / मथुरा प्रसाद 'नवीन'
Kavita Kosh से
सीताराम सीताराम
कही ऐसन भूल नै होवो
जे एखने कांटा हो
बढ़ के तिरसूल नै होवो
छटपटा नै
हे इंसान हा इंसान
इंसान के इंसान से जोड़ो
ई देस सबके हे
एक मट्टी में मिलाबै बाला लोग के
सोन्ही मटिये काम देतै
चाहे केतनै
अदल बदल करै
कवि के हाथ में कलम
अउ किसान के
हाथ में लठिये काम देतै
हमर खेत कागज के पन्ना, हइ
सबद में
जे रस पिरोबऽ ही गन्ना हइ
बाकी सब कुछ
नोन के ढेला हइ
ई एकइसवी सदी के बात
एक नया टेकनिक
एक नया टोन के खेला हइ

