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हर्फ़े-गुजरात फ़क़त आँसू हैं / सुरेश सलिल

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हर्फ़े-गुजरात फ़क़त आँसू हैं

मेरे दिन रात फ़क़त आँसू हैं


देखिए तो ज़रा य' पसमंज़र

आब-ए-खंभात फ़क़त आँसू हैं


आप आए हैं मिहरबानी है

क्या करूँ बात, फ़क़त आँसू हैं


दास्ताँ दिल की क़लमबंद करूँ

वह, क्या बात, फ़क़त आँसू हैं


रंजना अरगड़े, सुल्तान अहमद

सारे हज़रात फ़क़त आँसू हैं


=

पसमंज़र= पीछे या भीतर का नज़ारा


(रचनाकाल : 2002)