भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
होगा कोई / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:52, 18 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=आहत युग / महेन्द्र भटनागर }}एक ...)
एक आदमी / झुका-झुका / निराश
दर्द से कराहता हुआ
तबाह ज़िन्दगी लिए
गुज़र गया।
एक आदमी / झुका-झुका / हताश
चोट से लहूलुहान
चीखता हुआ / पनाह माँगता / अभी-अभी
गुज़र गया।

