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जीवन देगा कौन भला / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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पेड़ मिला था, पेड़ मिला।
मुझे राह में पेड़ मिला।
पत्ते सूखे-सूखे थे।
डालों के मन रूखे थे।
नहीं घोंसले कहीं रखे,
पंछी उस पर नहीं दिखे।
बोला तना सुबक कर के,
मैं तो दुनियाँ छोड़ चला।
जड़ में सेंध लगाईं थी।
विष की दवा पिलाई थी।
हींग रखी या मठा पड़ा,
नहीं किसी को पता लगा।
ऐसे कामों में लेकिन,
आगे है इंसान सदा।
पेड़ हमें वह देते हैं।
जिसको जीवन कहते हैं।
मिलेओषजन पेड़ों से,
छोटे बड़े अधेड़ों से।
अगर पेड़ न होंगे तो,
जीवन देगा कौन भला।

