भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घोड़ा / वास्को पोपा / सोमदत्त
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:23, 1 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वास्को पोपा |अनुवादक=सोमदत्त |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अकसर
उसके आठ पाँव होते हैं
उसके जबड़ों के बीच
रहने आए आदमी
चारों कोनों से धरती के
तब उसने काटे अपने होंठ ख़ून छलछलाने तक
चाहता था वो
चबा लेना मक्के की तमाम कड़वी
ये अरसा पहले की बात है
उसकी ख़ूबसूरत आँखों में
बन्द हो गई है पीड़ा
गोल चक्कर में
क्योंकि कोई अन्त नहीं है सड़क का
और उसे घसीटनी ही है अपने पीछे
तमाम दुनिया
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सोमदत्त

