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पत्रिका / देवी प्रसाद मिश्र

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ग़ाज़ियाबाद के बिल्डरों को तो आप जानते ही हैं
उनमें से एक ने राजनीतिक-सांस्कृतिक पत्रिका निकाली

जिसमें विचारधाराओं वाले लोग
कविताएँ वग़ैरह समीक्षाएँ वग़ैरह विचार वग़ैरह लिखने लगे

पत्रिका निरंतर घाटे में निकल रही थी
लेकिन मालिक को घाटा नहीं हो रहा था वह

नौकरशाहों और मंत्रियों के पास जाया करता था
और पत्रिका के अंक दिखाया करता था

मतलब कि वह बिना यह कहे ताक़तवरों को
डराया करता था कि ये बड़े-बड़े विचारक आप पर

बहुत विश्लेषणात्मक तरीक़े से लिख सकते हैं
मतलब कि आपके धंधों पर और आपके घपलों पर

मतलब कि आप भी हमें देश को उजाड़ने दें कि जैसे
हम आपको हर तरह के पतन का मौक़ा दे रहे हैं

नहीं तो जैसा कि मैंने बिना कहे कहा कि
ये बड़े-बड़े लोग आप पर बहुत

विश्लेषणात्मक तरीक़े से लिख सकते हैं
और जो अपना विश्लेषण कम करते हैं

और जो आप ही देखिए हम जैसे अपराधियों के पैसे से
कितनी अच्छी और मानवीय पत्रिका निकालते रहते हैं।