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पुराना क़िला / देवी प्रसाद मिश्र

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हम लोग पुराना क़िला के गेट अंदर दाख़िल हो ही रहे थे
कि एक बदहवास-सी स्त्री ने दूसरी उतनी ही हवास खोती

औरत से पूछा कि कुछ पता लगा क्या कि किसने ये बनवाया था
पूरे क़िले में कोई गाइड नहीं था—किसी वक़्त रहा होगा

लेकिन उसने देखा होगा कि कोई कुछ जानना ही नहीं चाहता तो
बग़ल में चिड़ियाघर के सामने जाँघिया बेचने लग गया होगा

ज़्यादातर पथप्रदर्शकों का यही हाल हुआ : इसलिए कोई यह नहीं जानना
चाहता था कि हुमायूँ कौन-सी किताब पढ़ रहा था जब वह सीढ़ियों से गिरा

मेरे बेटे ने अलबत्ता ये पूछा कि क्या लाइब्रेरी में अब भी किताबें हैं मैंने कहा
होंगी भी तो स्टाइन की हॉरर सीरीज़ यहाँ नहीं होगी

एक जगह से चिड़ियाघर का एक हिस्सा दिख रहा था जहाँ एक मोर लँगड़ाता
हुआ जा रहा था। मुझे बहुत देर बाद याद आया कि मोर राष्ट्रीय पक्षी है। मेरे

दोनों पैरों में चोट है इसलिए नहीं कि नक्सली हूँ और दोनों पैरों में गोलियाँ
लगी थीं

वैसा होता
तो चोटों को

इतना न
छिपाता।