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संकट द्वार / देवी प्रसाद मिश्र

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दस साल पुराने दमे का इलाज दस दिनों में—
बस में पिछले दरवाज़े के पास की खिड़की के ऊपर

यह लिखा था : उम्मीद का सिलसिला यहीं से
शुरू होता था क्योंकि इसके बग़ल के विज्ञापन में

बाबा मुस्कान जी का दावा था कि रोते हुए आओगे
और हँसते जाओगे जिसकी व्याख्या की गई थी कि

जब समाधान है तो तू क्यों परेशान है और फिर
साफ़ किया गया था कि बिज़नेस, उलट दिमाग़, हौलदिली

गृह कलह, मकान, दुकान, नुक़सान, मुक़दमा, सदमा,
सबका शर्तिया इलाज बाबा के पास है

जबकि बग़ल के पर्चे में एक प्लेब्वॉय ने अपना
मोबाइल नंबर दे रखा था और अपनी हाइट

और अपने अंग का साइज़। इस सबके ठीक
ऊपर लिखा था संकट द्वार

पता नहीं आपके घर में इस तरह का कोई द्वार है
या नहीं मेरे यहाँ तो है और घर से निकलने

के लिए मैं रोज़ उसी का इस्तेमाल करता हूँ
घर में दाख़िल होने के लिए भी