औपचारिकेतर शिक्षा / नेहा नरुका
तहसीले की लड़की थी वह
मम्मी की शाम ठीक चार बजे चलने वाली औपचारिकेतर कक्षा में
तहसीले की लड़की पढ़ने आती थी
गाँव की रूढ़ि के अनुसार तहसीले का सही नाम तहसीलदार रहा होगा
तहसीला बैण्ड बजाता था
वह तबसे बैण्ड बजाता जब मेरा जन्म भी नहीं हुआ था
फिर जब मेरा जन्म हुआ
और मैं भी सपने देखने लगी तो मैंने पहला सपना यही देखा कि मेरी शादी में भी तहसीले का ही बैण्ड बजे
बजे — बहारो, फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है...
मगर तहसीले की लड़की का सपना पता नहीं क्या था !
पढ़ने में वह कुछ ख़ास न थी
तहसीले की पाँच बेटियाँ थीं
जिनमें बड़ी वाली दो मम्मी की सहेलियों जैसी थीं
मगर इस वाली को मम्मी केवल औपचारिकेतर के बच्चों में गिनती थीं
फिर मम्मी की सरकारी स्कूल में नौकरी लग गई
और शाम की ठीक चार बजे लगने वाली औपचारिकेतर कक्षा कहीं विलुप्त हो गई
कैलेण्डर में साल भी बदलने लगे
औपचारिकेतर को सब गुज़रे ज़माने की गुज़री बात समझकर भूलने लगे
फिर एक दिन देखा मैंने
तहसीले की लड़की मम्मी से लड़ रही है
औपचारिकेतर शिक्षा बन्द क्यों कर दी ?
मेरा भविष्य तो ख़राब कर दिया न ?
अब मैं कैसे पढूँ ? क्या करूँ ?
मम्मी से एक बड़ी ग़लती हुई थी
तहसीले की लड़की के कक्षा पाँच के पेपर छूट गए थे
या खो गई थी कक्षा पाँच की अंकसूची
पता नहीं क्या हुआ था उसके साथ
मुझे केवल इतना याद है
मम्मी से घण्टेभर लड़ी थी उस दिन तहसीले की लड़की
वह मेरे दरवाज़े से रोकर गई थी
पता नहीं फिर तहसीले की लड़की का क्या हुआ ?
पढ़ी या बिन पढ़ी ही रह गई
उसका तमतमाता चेहरा अब भी मेरे आँखों के सामने है
सुना है तहसीले की पाँचों लड़कियों के ब्याह हो गए एक-एक कर
लड़के बैण्ड में शामिल होते रहे एक-एक कर
औपचारिकेतर शिक्षा का सरकार ने भविष्य में क्या किया
चालू रखी या बन्द कर दी
नहीं मालूम
मेरी शादी पर एक दूसरा बैण्ड बजा था
और जब से वह बैण्ड बजा है मैं तहसीले के बैण्ड का संगीत भूल गई हूँ
मुझे रह रहकर अब केवल तहसीले की लड़की याद आती है
याद आती है धूप में तपी उसकी त्वचा
और उसकी तोप-सी आवाज़
और एक शर्मिन्दगी-सी छा जाती है ।
अगस्त 2025

