भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं तो कुछ भी नहीं / क्षेत्र बहादुर सुनुवार

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:56, 30 नवम्बर 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=क्षेत्र बहादुर सुनुवार |अनुवादक=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्यों कहते हो तुम कुछ भी नहीं!
तुम्हारे आँच से यहाँ
किसी की ज़िन्दगी रोशन है,
तुम्हारे तसब्बुर से यहाँ
कुछ क़दमों में जान है,
तुम्हारे मुस्कुराते चेहरे से ही
पाएमाल हुए कई दिलों में
धड़कने जगी है,
तुम हो तो हौंसले उरोज़ पर है,
किसी के लिए तुम इक ज़िन्दा मिसाल हो
फिर
क्यों कहते हो कि तुम कुछ नहीं!

तो क्या हुआ गर दुनिया को
तुम्हारे अहमियत का पता नहीं,
लाख सितारो से बेहतर तो
यह एक सूरज हैं
जो आफताब-ओ-तपिश देता है,
हज़ारो को मकीँ किए हुए
इक सहारा दरख़्त होता है,
स्याह शब में इक अकेले
माहताब नूर बिखेरे हैं,
फिर
क्यों कहते हो कि तुम कुछ भी नहीं!
क्यो कहते हो कि तुम कुछ भी नहीं!!